बुधवार, 18 मार्च 2020

अहिंसा सत्य और करुणा के देश में

अहिंसा सत्य और करुणा के देश में: १-अहिंसा सत्य और करुणा के देश में ,जन्मे गांधी ,सुभाष ,विवेकानंद भेष में |२-.....

1 टिप्पणी:

  1. "अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक पटलपर भारत का आदान-प्रदान" -सुखमंगल सिंह
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    आधारभूत आर्थिक क्रिया जो आदि काल से सभ्य समाज तक में व्याप्त है। वह मानव समाज के लिए किसी भी देश की प्रगति प्रदायनी है। व्यापार उत्पादन की अधिकता और अभाव,अकाल का द्योतक माना जा सकता है। लेकिन अभाव ग्रस्त देशों की अपेક્ષા अधिकता युक्त देशों का व्यापार अधिक संतुलित होता है। भारत अति प्राचीन काल से ही व्यापार करता आ रहा है इसका प्रमाण हमारे ग्रंथों में मौजूद हैं। हमारा देश जल-थल सभी मार्गों पर समान अधिकार रखता है। भारत की व्यापारिक कुशलता का प्रतीक प्रमाण यहां के प्राचीन हजारों वर्ष पूर्व के निर्मित नौकाुयें तथा बन्दरगाह हैं। जिसे गुजरात तट पर ढूढ़ निकाला गया। यूरोपीय लोगों का आगमन हुआ उनके व्यापारिक शोषण ने भारत को पिछड़े राष्ट्र के रूप में गिना जाने लगा। आगे वाहन तथा वस्तुओं का सुधार हुआ भाप के इन्जन का आविष्कार हुआ। वस्तुओं का निर्माण हुआ, जलयान और स्थल पर परिवहन प्रगति के आधार बने। फलत:ब्रितानी शासन काल में भारत के सम्पूर्णव्यापार ब्रिटेन के हित में विकसित हुआ। वह भारत जो कभी निर्मित सामानों का निर्यात करने में अग्रणी देशों मे से था,धीरे-धीरे अवनति के कारण कच्चा माल का निर्यातक तथा तैयार माल का आयातक देश हो गया।

    भारत के निर्यात व्यापार की संક્ષિप्त तालिका देखें-
    भारत की वस्तुएं सन् 1987-1988 प्रतिशत सन्1992-1993 प्रतिशत

    रूपये करोड़ में रूपये करोड़ में
    वस्त्र 2860॰9 18॰2 12872॰5 24॰1 आभूषण रत्न 2613॰5 16॰6 8839॰1 16॰6 इन्जीनियरिंग के सामान 1433॰0 9॰1 6465॰5 12॰4 कृषि उत्पाद 1278॰0 8॰1 5513॰3 10॰4 बागान उत्पाद 1166॰0 7॰4 338॰9 2॰6 चमड़ा का सामान 1148॰5 7॰3 3692॰5 7॰0 कालीन 921॰2 5॰9 1538॰9 2॰0 रसायन 823॰4 5॰2 5418॰5 10॰2 पेट्रोलियम पदार्थ 648॰7 4॰1 1379॰3 2॰6 दस्तकारी की सामग्री 639॰8 4॰1 772॰5 1॰5 खनिज 542॰8 3॰4 2145॰7 4॰1 समुद्री उत्पाद 525॰1 3॰3 1743॰1 3॰3 इलेक्ट्रानिक्स एवं कम्प्यूटर --- -- 634॰6 1॰2 खेलकूद का सामान -- -- 101॰2 0॰2 अन्य वस्तुएं 525॰1 3॰3 659॰4 1॰2

    भारत देश के निर्यात व्यापार की संरचना की तालिका यह थी। बाद में भारत के आयात व्यापार की संरचना तालिका प्रस्तुत होगी।उद्योग और रोजगार की अपार संभावनाएं वेदों में छिपी हुई हैं। जबकि जीविका आधारित मौजूदा शिક્ષા प्रणाली वेदों से अभी बहुत पीछे है। कृषि विજ્ઞાन के अलावा हस्तशिल्प,जलपोत, वायुयान निर्माण,अस्त्र-शस्त्र निर्माण और स्थापत्य की जो तकनीक वेदों में दी गई है उसके आगे वर्तमान का विજ્ઞાन कहीं नहीं टिकता। वेदों के अध्ययन से सामरिक ક્ષमता के विकास में महारत हासिल की जा सकती है। यह बातें द्वारिकाधीश संस्कृत एकेडमी गुजरात के निदेशक प्रोफेसर जय प्रकाश नारायण द्विवेदी ने चेतसिंह किला परिसर वाराणसी में अखिल भारतीय वैदिक सम्मेलन में कही। उन्होंने आगे कहा-वेदों में वर्णित समृद्धशाली कृषि प्रणाली का अनुसरण किया जाना चाहिए। अथर्ववेद में कृषि,स्वर्णकारी,कुंभ- कारीके साथ ही जलपोत निर्माण की कलाकारी का अनुसरण कर हम प्रगति के पथ पर बढ़ सकते हैं।

    व्यापार और सेना का जो स्वरूप महाभारत में मिलता है,उस प्रकार का अब तक दुनियां में कभी भी नहीं देखा जा सका है।
    उस समय के युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले रथों,वाणों,धनुषों के अलावा अस्त्र-शस्त्र का जिस तरह निर्माण होता था,वैसी पहुच इस दौर के वैજ્ઞાनिकों और अभियंताओं का अभी नहीं हो सकी है।

    वेदों में चार सौ प्रकार के विमानों का उल्लेख है। अथर्ववेद के यंत्र सर्वस्व वैमानकी में घोड़े के मूत्र से विमान उड़ाए जाने
    का उल्लेख किया गया है। वैदिकवांगमय का विकास होने से राष्ट्र स्थापत्य के ક્ષેत्र में सबसे आगे निकल सकता है।

    संभवत: वेदो में इसी लिए वर्णन मिलता है- 'हम निष्काम से कर्म करके पूण्यात्मा हुए।(अथर्ववेद कांड18सूत्र3मंत्र24/वेदामृत अथर्ववेद सुभाषितावली)।
    आंख पर पट्टी बांधकर रहने वाली गांधारी की दृष्टि में क्या था कि उसने दुर्योधन को जहां तक देखा,वहां तक का हिस्सा
    वज्र हो गया था। उत्तरा का गर्भ छह महीने तक दूसरी महिला की कोख में कैसे रखा गया था,ऐसे गूढ़ तथ्यों तक वर्तमान विજ્ઞાन अभी तक नहीं पहुच सका है।
    - सुखमंगल सिंह ,अवध निवासी

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