"हिंदी की शाख बढ़ी "
हिंदी की शाख बढ़ी ,
दुनिया की आँख गड़ी |
गंगा की धाख बढ़ी ,
शिक्षक भी बेवाक चढे ||
नर- नारी खाप खड़े ,
मुल्लाओं के चाप चढ़े |
यूं.पी. के साथ चलें ,
धर्मराज क राज चले ||
स्वच्छता- हाथ बढे,
आमजन का काज चले |
हिंदी -परिपाटी बढे ,
हिंदी क सहपाठी गढ़ें ||
चोरी राज पढ़ें ?
विकास के साथी बढ़ें |
हिंदी -शाबाश कहें ,
हिन्दुस्तानी राज गढ़ें ||
संस्कृति 'मंगल' बढे-
भी जनता साथी गढे |
हिंदी की शाख बढ़ी ,
दुनिया की आँख गड़ी||
हिंदी की शाख बढ़ी ,
दुनिया की आँख गड़ी |
गंगा की धाख बढ़ी ,
शिक्षक भी बेवाक चढे ||
नर- नारी खाप खड़े ,
मुल्लाओं के चाप चढ़े |
यूं.पी. के साथ चलें ,
धर्मराज क राज चले ||
स्वच्छता- हाथ बढे,
आमजन का काज चले |
हिंदी -परिपाटी बढे ,
हिंदी क सहपाठी गढ़ें ||
चोरी राज पढ़ें ?
विकास के साथी बढ़ें |
हिंदी -शाबाश कहें ,
हिन्दुस्तानी राज गढ़ें ||
संस्कृति 'मंगल' बढे-
भी जनता साथी गढे |
हिंदी की शाख बढ़ी ,
दुनिया की आँख गड़ी||
सबसे पहले बताना चाहूंगा दिनाक जनवरी १९ ,२०१८ को रात्रि ११ बाजे तक जी न्यूज का पूरा साक्षात्कार,पुन: रिलीज हमने सूना ,जो मोदी जी के दाओस जाने से पहले का है |विचारों को सुनने के उपरान्त एक रचना प्रस्तुत -
जवाब देंहटाएं"भारत प्यारा "
बड़ा ही प्यारा
सबसे न्यारा
विश्वबंधुत्व
जिसका नारा
भारत देश हमारा |
कलकल बहतीं
नदिया सारी
गंगा की निर्मल
धार है प्यारी
जग में बड़ा
यह बड़ा दुलारा !
भारत देश
हमारा |
शान्ति -सभ्यता
जिसका नारा
प्राचीन सभ्यता
का भी प्यारा
भारत देश
हमारा ||
"नारी को सन्देश "
जवाब देंहटाएं-------------------
नारी के इतिहास में
है कविता जान ।
सच से लड़ने की
सहर्ष स्फूर्ति प्रदान ।
सहना नहीं अब
लड़ना ही मान ।
बदलते परिवेश में
मुकावला ठान ॥-सुखमंगल सिंह
" वाणी में नम्र भाव "
जवाब देंहटाएंविद्या- दौलत मेहनती को मिल जाती है |
स्वास्थ्य नियमन हो तो लौट न पाती है ||
ज़रा सी भूल से तस्वीर बदल जाती है |
गुजरे हुए समय में रौनक नहीं आती है ||
अच्छे पल में पल रहे प्रभु का प्रेमी प्यार
मथुरा-वृन्दावन पावन मंगल मोहन साथ ||.
.
यदि वाणी में हो नम्र भाव का अर्पण !
सुन्दरता खुद से ही लेकर आये दर्पण ||- सुख मंगल सिंह
परम सिद्ध संत दर्शन और
जवाब देंहटाएंकाव्यार्पण यात्रा वृत्तांत अ-4 - सुखमंगल सिंह
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कठिन से कठिन राह को आसान और सुगम - सरल बना लेना ,उसे पूरी तरह से अपने
अनुकूल कर लेना और इस प्रक्रिया के दौरान खुद को सहज बनाए रखना ,अपने आप में
एक साधना है | यह साधना संत महात्मार्ओं में विद्दमान रहती / मिलती है | आम आदमी में यह साधना -साधना ,विना संतों -महात्माओं की कृपा के कदापि संभव नहीं है | सीखना मानव स्वभाव है| साधना -साधना प्राणी की प्रवृत्ति है | साधना साध लेना यह ईश्वर की कृपा /गुरुओं के आशीर्वाद से सहज और सरल हो जाता है | वह गुरु कोई
भी हो सकता है परन्तु भगवान की कृपा के विना असंभव /संभव करने वाले मात्र ईश्वर ही एक मात्र हैं | जीव मानव अहंकार वस बड़ा मान प्रदान करने वाला कहने में
तनिक भी नहीं हिचकता |
यात्रा के दौरान यात्रा को सरल रसमय ज्ञानवर्धक बनाये रखने और बोझिलता से दूर रहकर अपने यात्रा संगी अजीत श्रीवास्तव को यह कहानी (जनप्रचलित ) हमने सुनाई - एक विवाहिता महिला ने नंगा बाबा के दर्शन की इच्छा ,अपने पति से की | वह बाबा के दर्शन के लिए अड़ी थी | आज्ञाकारी महिला पति की आज्ञा लेके बाबा आश्रम आने को तैयार थी | माँ सरयू विकराल बढी थीं | बड़ी नाव से वह आश्रम आई | बाबा के आश्रम में दर्शनार्थियों की भीड़ अधिक थी | सत्संग चल रहा था | सीता - राम की कथा
और केवट का नाव से प्रभु के पार होने पर प्रवचन सुनकर दर्शनार्थी आत्म विभोर थे |
इस पार घाट से पुन : बड़ी नाव अंतिम बार यात्रियों को लेकर उस पार चार बजे चली
जाती थी ,उन दिनों | बाबा के दर्शनार्थ आई महिला पूजन ,अर्चन ,ध्यान में समय का
ध्यान भूल गयी | विलंब जादा हो चुका था | नाव भी अपने समय से अपने गंतव्यको
छूट चुकी थी | महिला को उस पार जाने का कोई विकल्प मार्ग नहीं सूझ रहा था | वह घबराई हुई थी | लग रहा था मानो पति की आज्ञाकारी महिला, वेसुध होकर उस पार जाने को, उन्मनी उनमान लिए कठुआए दिख रही थी | उस समय उपगीत यानी
रामा रामा रामा ,आठौ यामा जपी रामा |
छांडी सारे कामा ,पैहौ अंतै सुविश्रामा ||...
जैसे गीत का वाचन ,भजन हो रहा था | महिला सरयू में उपटा(पानी की बाढ़ ) देखकर
उपनेता(पहुचाने वाला ) की खोज में व्याकुल हो उठी थी | कि वह बाबा से बोली -
बाबा ! मेरा पति मुझे मानता तो है परन्तु वह बड़ा क्रोधी हैं | अगर मैं घर आज नहीं
पहुची तो मेरा पति मुझे मारेगा ,पीटेगा | बाबा से महिला दीन-हीन दशा में विनती की|
यहाँ भक्तावर सूरदास जी का 'बिलावल 'में वर्णन है कि-
भावार्थ ,संसार सागर में माया अगाध जल है ,लोभ की लहरें हैं ,काम वासना का मगर है,इन्द्रियाँ मछलियाँ हैं और इस जीवन के सिर पर पापों की गठरी रखी हुई है | तब एक हरि नाम की नौका ही पार लगा सकती है, पर-स्त्री तथा पुत्र का माया मोह उधर देखने ही नहीं देता | भगवान ही हाथ पकडकर पार लगा सकते हैं | यथा -
अब कै माधव ,मोहिं उधारि|
मगन हौ भव अम्बुनिधि में ,कृपासिंधु मुरारि||
.........................................
नाहिं चितवत देत तियसुत नाम -नौका ओर||
थक्यौ बीच बेहाल बिह्ववल,सुनहु करुनामूल |
स्याम,भुज गहि काढि डारहु , सूर ब्रज के कूल ||(सुबोध पद ,भक्तवर सूरदास के पेज १३ से )
नंगा बाबा ने महिला से कहा - स्तोत्रिनामुत भद्रकृत | अर्थात परमात्मा स्तुतिकर्ताओं
का कल्याण करने वाला है |
'प्रशस्तमित चारुमस्मै कृनोति |अर्थात परमात्मा देवभक्त का सब प्रकार से भला करता है | (अथर्ववेद सुभाशितावली ,वेदामृतम पेज ११ से ) वचन सूना कर आगे बोले -भद्र देवी ! उस पार तू कैसे पहुची | यह बात किसी को भी मत बताना |
प्रभु का राज राज ही रहता है | राज ही रहने देना ! वह जो कुछ करता कराता है | वह वही जानता है | हम सब अनुभव करता मात्र हैं |
साधु-संतों द्वारा प्राप्त ज्ञान को संचत करना और संचित ज्ञान पर अमल करना चाहिए |
तू उस पार पहुच जाओगी | उस पार कैसे पहुंची | यह बात किसी को नही बताना | यदि इसे बताओगी तो बताते ही तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी |
उधर उस पार महिला को महिला का पति इंतज़ार कर रहा था | जोह रहा था आने वाले राहगीरों से अपनी पत्नी के रास्ते में देखने की बाते पूछता रहा | आने की बातें सब से आने वाले पार के सभी राहगीरों से | डगर के राही से पूछता रहा | कहता रहा बूढों -वच्चों से -
'मेरी नारि कित देखौ, उस पार गयो |
नहिं आयो बतायो मोहि, उबटी देव देविका लेखों ||
संत को बचन मोहि भावत ,मति लालसा होते रैहों |
सिथिल भई सबहीं देहियाँ ,जीवत नारि न आइहो||
अब कभी नहीं डाटूगा ज़ोइ, जोखिम जोरू जाब्ता |
जानि-जानि अनजानी सोई ,गहरु इतौ कित लायौ || स्वरचित (काव्यकृति 'सरयू तट से' शीघ्र प्रकाशनार्थ )
(कवि श्री सुखमंगल सिंह के 'सुपाथेय काव्य सरिता 'की पाण्डुलिपि देखने पढ़ने के बाद अपनी प्रतिक्रिया )
जवाब देंहटाएं--------------------------------------------------------------------
गांव के गिरांव के पगडंडियों के ठाँव के |
फक्कड़ घुमक्क्ड़ नाव खे रहे पड़ाव के ||
सारिता बहाने वाले काव्य को सजाने वाले ,
सुपाथेय के सर्जक ,सुखमंगल जी महान हैं |
देश क्व ,विदेश के हुए सुपरिचित परिवेश के,
धन से निर्धन किन्तु विद्या से धनवान हैं |
लेखन की धूप और कविता की छाँव के |
गांव के गिरांव के पगडंडियों के ठाँव के ||
नाम सुखमंगल जो सोचें नहीं अमंगल ,
प्रतिपल यही चाहते की सबका कल्याण हो |
काटों भरी राहें हों भले , आगे बढ़ते जाते ,
नाला हो ,नदी हो या सामने पहाड़ हो |
नगर में होकर भी, बने रहते गांव के |
फक्कड़ घुमक्क्ड़ नाव खे रहे पड़ाव के ||
बात - बगीचे की हो,या बात बागवान की ,
मंगल-मंगल हर तरफ हो, मंगल हिंदुस्तान की |
छंदबद्ध रह पकड़े कविता - कामन ही ,
भारत विश्व गुरु बने ,कर चिंता जहान की |
सहज , सरल सदा सांस्कारिक भाव के ,
फक्कड़ घुमक्क्ड़ नाव खे रहे पड़ाव के ||(बदनाम बनारसी )
दो शब्द -
जवाब देंहटाएंआज के इस युग में आपा धापी के बीच लेख ,कविता ,गीत गजल,ब्यंग लिखना माँ वाग्देवी की असीम कृपा ही है | समय के अभाव में भी कवि कुछ भी देखकर सोचने
लगता है, उसके हृदयपटल पर जो बात आती है उसे अपने शब्द सुमनों से एक चित्रण
कर लेखनी से उकेरता है और आर्थिक अभाव में भी अपने साहित्य प्रेमियों तक
साहित्य को पहुचाने के लिए सुरीले कंठ से कविता परोसने का प्रयास करता है |
श्री सुखमंगल सिंह जी से अपना कई दशकों से परिचय है मैं इनकी लेखनी से भली-
भाँती परिचित हूँ | इनके अंदर प्रेम की अटूट भावना है ,,इन्होंने महिला प्रसस्तीकरण
के लिये कार्य किया है | इनकी रचनाएं देशभक्ति की भावना दर्शाती हैं |
श्री सुखमंगल सिंह जी की पुस्तक 'सुपाथेय काब्य सरिता 'का प्रकाशन होने जा रहा
है यह जानकर मुझे अपार हर्ष है | मैं शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए बाबा विश्वनाथ
जी से अनुनय -विनय करता हूँ कि यह निरंतर सफलता के सोपान पर पहुचें |
शब्द सुमन जन-जन तक जाये|
पायें शोहरत खूब |
सात मन्दर पार भी भेजें
लिखा गहराई में डूब |
हृदय जीत ले रीत -प्रीत की
बना रहे जब हुब्ब |
गले लगालें बनें आपके
उनके भी महबूब ||
- जीतेंद्र नाथ सिंह 'जीत '
(हिन्दी-भोजपुरी लोक गायक )
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपरम सिद्ध संत दर्शन और
जवाब देंहटाएंकाव्यार्पण यात्रा वृत्तांत अ-१
यो जागार तनु सामानियन्ति
जो जागरूक रहता है उसी को साम (स्तुति,प्रशंसा एवं यश )प्राप्त होते हैं |
ऋग्वेद ५/४४/१४
अपने सभी सुधी पाठकों के लिए 'लो उगा सूरज 'काव्यकृति के लोकप्रिय रचनाकार कवि अजीत श्रीवास्तव
(यात्रा संगी ) सहित यह हार्दिक शुभकामना कि'जागरूकता बने कर्म का आधार ,जीवन में साम मिले अपरम्पार प्रेषित करते भये वृत्तांत क्रम आगे जारी |
आजमगढ़ के पूर्वीछोर पर सदर हॉस्पिटल के लगभग एक बीघा पहले पुण्य धरती के श्रेष्ठ कवि -साहित्यकार -मनीषी डा ० प्रभुनाथ सिंह 'मयंक 'जी के आवास पर हम पहुंचे | मयंक जी प्रयाग (इलाहाबाद ) गए रहे कि किसी भी बड़े अभिमान की शुरुआत का श्रीगणेश प्रथमतः उस स्थान विशेष के श्रेष्ठ कवि के आवास पर होकर ही आगे बढ़ना उचित होता है | इससे अभियान की आगे की विघ्नबाधायें स्वतः पूरी तरह से नष्ट ही जाती हैं | निर्विघ्न रूप से कार्य सम्पन्न कर लेने में प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश जी अपना सहज आशीष भी उसी आवास पर ही प्रदान कर देते हैं क्योंकि बड़े साहित्यकार का आवास एक बड़ा तीर्थ होता है |
श्री मयंक जी के पूरे परिवार ने समर्पण भाव से हमलोगों को मान और सम्मान प्रदान किया | रात्रि ०८ बजे हम बिलरिया गंज ,भीमबर होते भये महुई के प्रतिष्ठित व्यक्तित्व श्री राज सिंह जी (मेरी पत्नी के बड़े भाई ) के घर यानी अपने ससुराल रात करीब साढ़े १० बजे पहुंचे | सन्नाटा से गुजरता सफ़र उस क्षेत्र में
सायं ०७ बजे के बाद संतकृपा से ही संभव हो पाटा है | सादा जीवन उच्च विचार की नीति का पूरी तरह पालन करते हुए रात्रि विश्राम वहीं किया | भाव से परिवार ने हमलोगों का आवभगत किया |
सुबह हम चलने को हुए तो श्रीनाथ सिंह जी (श्री राज सिंह के कनिष्ट भ्राता ) ने यह निवेदन किया कि आप
द्वय आज कृपापूर्वक मेरे गरीबखाने पर अब रुकें |
महुई में बच्चों का एक अच्छा स्कूल है | इन दिनों बच्चों का ग्रीष्मावकाश चल रहा है | बच्चों ने तीनदिवसीय क्रिकेट मैच (प्रतियोगिता ) आयोजित किया ,श्री श्रीनाथ जी के आवास पर रुके हुए दिन को अंतिम दिन रहा |
आयोजक समिति तक यह बात पहुंची की बनारस से दो अच्छे कवि पधारे हैं आयोजन प्रमुखों में सर्व श्री सिद्धार्थ सिंह ,बृजेश ,राहुल और शशांक हमारे पास आये और यह प्रस्ताव रखा कि खेल का समापन काव्य समारोह से हो |
यात्रान्तर्गत काव्यार्पण का प्रथम सफल कार्यक्रम महुई में हुआ सम्पन्न |
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Sukhmangal Singh महुई में बच्चों का एक अच्छा स्कूल है | इन दिनों बच्चों का ग्रीष्मावकाश चल रहा है | बच्चों ने तीनदिवसीय क्रिकेट मैच (प्रतियोगिता ) आयोजित किया ,श्री श्रीनाथ जी के आवास पर रुके हुए दिन को अंतिम दिन रहा |
आयोजक समिति तक यह बात पहुंची की बनारस से दो अच्छे कवि पधारे हैं आयोजन प्रमुखों में सर्व श्री सिद्धार्थ सिंह ,बृजेश ,राहुल और शशांक हमारे पास आये और यह प्रस्ताव रखा कि खेल का समापन काव्य समारोह से हो | यात्रान्तर्गत काव्यार्पण का प्रथम सफल कार्यक्रम महुई में हुआ सम्पन्न |
आयोजक समिति तक यह बात पहुची कि बनारस से दो अच्छे कवि पधारे हैं। आयोजन प्रमुखों मे सर्वश्री सिद्धार्थ सिंह,ब्रजेश,राहुल और शशांक हमारे पास आये और मैने व हास्यव्यंग के प्रख्यात कवि श्री चपाचप बनारसी जी ने अखिल भारतीय सद्भावना एसोसिएशन एवं कथ्य-शिल्प (कविता कार्यशाला) की ओर यह यह निर्णय लिया है कि गा्मीण कस्बाई पिछडे इलाकों को काव्य की अलख जगायी जाये । इसके अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं। यात्रान्तर्गत काव्यार्पण का प्रथम सफल कार्यक्रम महुई खास में हुआ सम्पन्न। कविता चपाचप जी की खूब सराही गई। तालियां भी खूब बजीं। महुई तालियों से गूंज उठी । संदेश परक मेरे इस मुक्तक -'
न मांग किसी और से ऊषा कीरश्मियां,
आज अपने आपमें खूद प्रकाश कर।
जो हो न सका उसके लिेए मत निराश हो,
जो हो सकेगा उसके लिए कुछ प्रयास कर।'(आन लाइन सुपाथेय काव्य सरिता
"प्रेमी-प्रेयसी की बतकुच्चन "
जवाब देंहटाएंहोली पर
मेरे मित्र से
उसकी प्रेयसी बोली !
श्रीमन आज मैं
किसी सहेली को
बुलाना चाहती हूँ !
आपस में
खुशी की बंशी
बजाना चाहती हूँ !
मित्र कहा
उत्तम-शुभ घड़ी में
पूछने की क्या बात !
जल्द बुलाओ
नृत्य-ड्रांस दिखाओ
मुजरा -सुनाओ !
तब फिर प्रेयसी बोली
बाहत हो चूका
वर्षों -वर्षों से होली !
कहा था जो
किया नहीं उसको
भूल चुका सबको |
इधर-उधर मुझको
खूब घुमाते हो
अँगुलियों पर नचाते हो !
मेरी बारी
आई है अब
मिल बताएँगे सब !
ता -था -थैया
ड्रांस तुम्हें
सब अब दिखाएंगे |
मूछें सारी
साफ- सुथरा
तुम्हारी कराएंगे!
तुम्हारे सिर
ढोलक बजायेंगे
खुशियां मनाएंगे |
होली आई है
मधुर गीत जाएंगे
जमकर होली मनाएंगे |
-सुखमंगल सिंह,अवध निवासी